भेष देख मत भूलिये, बूझि लीजिये ज्ञान
बिना कसौटी होत नहीं, कंचन की पहिचान
-०-
न्हाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाय
मीन सदा जल में रहै, धोये बास न जाय
-०-
मूँड़ मुड़ाये हरि मिले, सब कोई लेय मुड़ाय
बार-बार के मुड़ते, भेड़ न बैकुण्ठ जाय
-०-
बिना कसौटी होत नहीं, कंचन की पहिचान
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न्हाये धोये क्या हुआ, जो मन मैल न जाय
मीन सदा जल में रहै, धोये बास न जाय
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मूँड़ मुड़ाये हरि मिले, सब कोई लेय मुड़ाय
बार-बार के मुड़ते, भेड़ न बैकुण्ठ जाय
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कबीर