શુક્રવાર, 13 માર્ચ, 2009

तूफ़ान ने , नाखुदा ने , समुन्दर ने , मौज ने
जिस जिस का बस चला है सफी ने डुबोये है
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इक पल को रुकने से दूर हो गई मंजिल
सिर्फ़ हम नहीं , रास्ते भी चलते ही
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दुआ बहार की मांगी तो इतने फूल खिले

कहीं जगह न मिली मेरे आशियाने को
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बचपन में जब मिले तो कहा मिलना शबाब में
आया है जब शबाब तो पाया नकाब में


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